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Friday 23 December 2016

एक *जज अपनी पत्नी को क्यों दे रहे हैं तलाक???*।

एक *जज अपनी पत्नी को क्यों दे रहे हैं तलाक???*।
*""रोंगटे खड़े"" कर देने वाली स्टोरी* को जरूर पढ़े और लोगों को शेयर करें।
⚡कल रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी *ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया*.
करीब 7 बजे होंगे,
शाम को मोबाइल बजा ।
उठाया तो *उधर से रोने की आवाज*...
मैंने शांत कराया और पूछा कि *भाभीजी आखिर हुआ क्या*?
उधर से आवाज़ आई..
*आप कहाँ हैं??? और कितनी देर में आ सकते हैं*?

मैंने कहा:- *"आप परेशानी बताइये"*।
और "भाई साहब कहाँ हैं...?माताजी किधर हैं..?" "आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन
*उधर से केवल एक रट कि "आप आ जाइए"*, मैंने आश्वाशन दिया कि *कम से कम एक घंटा पहुंचने में लगेगा*. जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट में पहुँचा;
देखा तो भाई साहब [हमारे मित्र जो जज हैं] सामने बैठे हुए हैं;
*भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं* 12 साल का बेटा भी परेशान है; 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।
मैंने भाई साहब से पूछा कि *""आखिर क्या बात है""*???
*""भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे ""*.
फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये *तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार करा के लाये हैं*, मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा - *ये कैसे हो सकता है???. इतनी अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है. ""प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है""*.
लेकिन मैंने बच्चों से पूछा *दादी किधर है*,
बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले *नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट* कर दिया है.
मैंने घर के नौकर से कहा।
मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ;
कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को *बहुत कोशिशें कीं चाय पिलाने की*.
लेकिन उन्होंने नहीं पी और कुछ ही देर में वो एक *"मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे "*बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
*पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली*. कि *""मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती""*ना तो ये उनसे बात करती थी
और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे. *रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी*. नौकर तक भी *अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे*
माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू मुझे *ओल्ड ऐज होम* में शिफ्ट कर दे.
मैंने बहुत *कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने की*, लेकिन *किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की*.
*जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी दूसरों के घरों में काम करके *""मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ""*. लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
*उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ*. पिछले 3 दिनों से
मैं *अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ,*जो उसने केवल मेरे लिए उठाये।
मुझे आज भी याद है जब..
*""मैं 10th की परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती""*.
एक बार *माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल से आया था*. उसका *शरीर गर्म था, तप रहा था*. मैंने कहा *माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है*.
लोगों से *उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया*. मुझे *ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं*कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए.
*कहते-कहते रोने लगे..और बोले--""जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे""*.
हम जिनके *शरीर के टुकड़े हैं*,आज हम उनको *ऐसे लोगों के हवाले कर आये, ""जो उनकी आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते""*,
जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो *"मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ".*
आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और *माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ*
.
जब *मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे*. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ।
*सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले* करके उस *ओल्ड ऐज होम* में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ।
और अगर *इतना सब कुछ कर के ""माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है"", तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा*.
माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. *माँ की तरह तकलीफ* तो नहीं होगी.
*जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे*.
बातें करते करते रात के 12:30 हो गए।
मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके *भाव भी प्रायश्चित्त और ग्लानि* से भरे हुए थे; मैंने ड्राईवर से कहा अभी हम लोग नोएडा जाएंगे।
भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
*बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला*. भाई साहब ने उस *गेटकीपर के पैर पकड़ लिए*, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा *मैं जज हूँ,*
उस चौकीदार ने कहा:-
*""जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये,
औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब"*।
इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.
अन्दर से एक महिला आई जो *वार्डन* थी.
उसने *बड़े कातर शब्दों में कहा*:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो
*मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..*?"
मैंने सिस्टर से कहा *आप विश्वास करिये*. ये लोग *बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं*.
अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. *कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.*
केवल एक फ़ोटो जिसमें *पूरी फैमिली* है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए
लेकिन जब मैंने कहा *हम लोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी*
आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए.
*उनकी भी आँखें नम थीं*
कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि *शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे*.......
लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की *भावनाओं को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे*.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.
👩 💐 *भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है; ये समझ गई थी* 💐
मैं भी चल दिया. लेकिन *रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे*.
👵 💐*""माँ केवल माँ है""* 💐👵
*उसको मरने से पहले ना मारें.*
*माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की ""रीढ़ कमज़ोर"" हो जाएगी* , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं
अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, *बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें*, अगर *माँ की आँख से आँसू गिर गए तो *"ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा"*, यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर *""सुकून नहीं होगा""* , सुकून सिर्फ *माँ के आँचल* में होता है उस *आँचल को बिखरने मत देना*।
👏👏💐💐👏👏

इस *मार्मिक दास्तान को खुद भी पढ़िये और अपने बच्चों को भी पढ़ाइये ताकि पश्चाताप न करना पड़े*।

Saturday 18 June 2016

क्या था वो अजीब तोहफा

क्या  था वो अजीब तोहफा 
हेलो दोस्तों ,

मोहन काका डाक विभाग के कर्मचारी  थे बहुत सालो से वो अपने पोस्ट ऑफिस के आस -पास चिट्ठियां बाटा करते थे। एक दिन अचानक से उनको किसी नए पते की चिट्ठी मिली। वो पता एकदम नया था इस पते पर उन्होंने कभी भी चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी। 

रोज  की तरह उन्होंने अपना चिट्ठी से भरा थैला अपनी कंधे पर टांगा और अपनी रोज की तरह रफ़्तार सुरु कर दी और बारी - बारी से वो अपने थैले की सारी चिट्ठी बांटने लगे लेकिन उनके मन में उस नयी चिट्ठी का पता समझने के लिए लगा था।  इसी बजह  उन्होंने उस चिट्ठी को अंत  में देने का फैसला लिया। 



जब उनकी सारी चिट्ठी बट गयी तो अंत में वो नए पते वाली चिट्ठी को देने के लिए आगे बढे। और आखिर में वो उस पते पर पहुच ही गए जिस पते की वो चिट्ठी थी। मोहन काका ने उस मकान की कुण्डी खटकाई और बोले अपनी चिट्ठी ले लीजिए। 

अंदर से आवाज आई वही गेट के निचे से खिसका दीजिये। लेकिन मोहन काका को ये बात कुछ गलत लगी और वो सोचने लगे की मैं कितनी दूर से यहाँ चिट्ठी देने आया हु और एक ये है की चिट्ठी लेने बहार तक नहीं आ सकती है इस वजह से मोहन काका ने दोबारा से आवाज लगायी आप को साइन (सिग्नेचर ) करने पड़े गे। इस वजह से आप को बाहर आना जरूरी है। अन्दर से आवाज आई तो ठीक है मैं आती हु। आप इंतज़ार करिये। 

मोहन काका इंतज़ार करने लगे। लेकिन जब २-3 मिनट तक कोई बाहर नहीं आया तो मोहन काका ने दोबारा कुण्डी खटकाई और बोले जल्दी करो मेरे पास कोई यही काम नहीं है बहुत काम है और बहुत सी चिट्ठी अभी बॉटनी है। और फिर खड़े हो गए लेकिन वो कुछ नाराज से हो गए। तभी अचानक से दरवाजा खुला और एक खुबसूरत सी 11-12 साल की एक नन्ही सी बच्ची सामने आई देखने में वो कोई गुड़िया जैसी लग रही थी।  लेकिन उसके दोनों पैर कटे हुए थे। ये देख मोहन काका का सारा गुस्सा पानी -पानी हो गया। इतने में वो बहुत ही मीठी आवाज में बोली  बताइए कहा साइन करने है।

तभी अचानक मोहन काका को याद आया वो अचानक चौक गए और बोले बेटा यहाँ पर कर दीजिये। और सोचने लगे की देखो भगवान की लीला। और वापस चले गए। इसी तरह दिन बीतते गए। 10-15 दिन के बाद अचानक फिर से उसी पते की  चिट्ठी उनके सामने आ गयी। मोहन काका भी वहां जल्दी से जाना चाहते थे। लेकिन उन्होंने पहले की तरह अपनी सारी चिट्ठी बाटी और अन्त में उन्होंने उस चिट्ठी को हाथ में लिया और उस पते की तरफ आगे बढ़ गए। कुछ ही समय के बाद वो उस घर के सामने खड़े थे। 

लेकिन इस बार उन्होंने कुण्डी तो खटकाई और बोले मैं आप की चिट्ठी दरवाजे के निचे से डाल दे रहा हु।  लेकिन इस बार अन्दर से आवाज आई रुकिए मैं आती हु ऐसा सुन कर मोहन काका रुक गए कुछ समय के बाद दरवाजा खुल और वो नन्ही सी परी अपने हाथो में एक गिफ्ट का पैकट लिए सामने आई और मोहन काका को देती हुई बोली। आप इस गिफ्ट को अपने घर में खोलिए गा। मोहन काका ने ना नुकुर की लेकिन अन्त में उसकी बात को टाल ना सके। और वो पैकेट ले कर घर की तरफ बढ़ गए। लेकिन रास्ते भर वो यही सोचते रहे की आखिर उस पैकेट में ऐसा क्या है जो घर पर खोलने को बोला है। 

यही सोच ही रहे थे की उनका घर भी आ गया। वो जल्दी से अपने कमरे में गए और जल्दी से उस पैकेट को खोला और उसमे चप्पल थी और निचे एक खत था जिसमे लिखा था की उस दिन जब आप आये थे तो आप के पैरो में चप्पल नहीं थी जिस वजह से आप बहुत दर्द महसूस कर रहे थे। इतना पढ़ते ही मोहन काका की आँखो में आँशु की धार निकल पड़ी और वो चप्पल को सीने से लगाय सोचने लगे की उस परी ने तो हमको ऐसा गिफ्ट दिया है की मई कभी मैँ जिंदगी भर याद नहीं भुला पाऊ गा। लेकिन मैं उस मासूम सी बच्ची के पैरो के लिए कुछ नहीं कर सकता। 

तो दोस्तों आप को ये कहानी कैसी लगी आशा करता हु की आप को पसंद आये गी। अगर पसंद आये तो कमेन्ट बॉक्स में अपने सुझाव देना ना भूले। 

अाप का अपना 

अमन मस्ताना कटियार 




Tuesday 24 May 2016

Garib Ne Ki Amir Ki Madad


हेलो दोस्तों 

आज मैं आप को जो कहानी  बताने  जा रहा हू  उसमे ये बताया गया है की कभी भी कोई भी किसी की मदद करता है तो हो सकता है की आप जिसकी मदद कर रहे हो वो भी आप को कभी मदद करे फिर वो गरीब हो या आमिर दूसरों की मदद की जरूरत कभी भी किसी को भी पड़ सकती है 

ऐसी ही ये कहानी है आप इसको पढ़े और समझे 
एक गाओं में एक बहुत  गरीब आदमी  रहता था एक दिन उसका बच्चा बहुत बीमार हो गया। उसके पास अपने बच्चे का इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं थे।  वो गरीब बहुत से लोगो के पास गया उसने अपने सभी जानकर लोगो से मदद मांगी। जिससे वो उम्मीद लगाए हुए था उनके पास भी गया।  जब वो सभी जगह से हताश  हो  गया। तब उसके दिमाग में एक ख्याल आया। 


वो उठा और अपने ही पास में रहने वाले किसी अमीर  व्यक्ति के पास गया और बोल साहब मुझको कुछ पैसो की सख्त जरूरत है मेरा बेटा बहुत बीमार है और उसको  इलाज करवाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है और अगर मेरे बेटे का इलाज सही समय पर नहीं हो पाया  तो वो मर जाये गा। तो कृप्या करके हमारी मदद करे। 

जब ये बात उस अमीर व्यक्ति ने सुनी तो उसको उस गरीब व्यक्ति पर रहम आ गया। और उसने उस गरीब व्यक्ति को कुछ पैसे दिए और बोला जाओ और अपने बच्चे का सही से इलाज करवाओ। 

इतना सुन कर उस गरीब व्यक्ति के आँखों में आशू आ गए और उसका गला भर आया और वो भरभराई आवाज में बोल भगवान आप का भला करे और आप का ये अहसान मैं कभी नहीं भूल पाऊ गा। और एक दिन मैं आप के इस अहसान का बदला जरूर चुकाऊ गा। 

अमीर व्यक्ति ने सोचा की ये गरीब व्यक्ति भला क्या हमारा अहसान चुकाये गा। लेकिन वो गरीब व्यक्ति से कुछ नहीं बोला केवल मुस्कुरा दिया। 

दिन बीतते गये और एक दिन अमीर व्यक्ति का इकलौता बेटा किसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो गया उसको किसी अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जहां उसका इलाज चल रहा था। वहां के डॉकटरो ने उस अमीर व्यक्ति से बोला की आप के बेटे को ब्लड की बहुत आवस्यकता है जल्दी से कही से भी इसका प्रबंद करिये नहीं तो आप के बेटे को बचाना मुस्किल हो जाये गी। 

वो अमीर व्यक्ति ब्लड की तलाश में निकल चला और सभी  जगह ढूड़ने के बाद भी उसको उस ग्रुप का ब्लॅड नहीं मिला। अब वो हताश हो कर बैठ गया। और तभी ये बात उस गरीब व्यक्ति को मालूम चला जैसे ही उसने सुना वो तुरंत वहां  पंहुचा जहां अमीर व्यक्ति का बेटा बीमार था और बोला  साहब आप हमारा ब्लड ले लीजिए 
शायद आप के बेटे के काम आ जाये। 

उसका ब्लड का टेस्ट किया गया तो पता चला की उसका वही ब्लड ग्रुप है जिसकी उस बच्चे को जरूरत थी फिर क्या था उस गरीब का ब्लड उस बच्चे को चढ़ाया गया और कुछ दिनों में ही वो बच्चा एकदम स्वस्थ हो गया। 

तब उस अमीर व्यक्ति के समझ में आया की चाहे कोई व्यक्ति गरीब हो या अमीर दूसरों की मदद की जरूरत सबको पड़ती है कभी भी कोई भी आप के काम आ सकता है। हो सकता है की वो व्यक्ति आप की मदद पैसे से ना कर पाये। लेकिन हो सकता है की वो आप की मदद किसी और तरह से कर दे। 

दोस्तों आप को हमारी ये कहानी कैसी लगी अगर पसंद आयी हो तो अपने दोस्तों को भी फॉरवर्ड करे ताकि वो भी हमसे जुड़ सके 

और अन्त में यही कहू गा की आप भी हमसे जुड़ कर लोगो की मदद करते रहे। क्या पता आप को भी कभी किसी की मदद की जरूरत पड़ जाए 

आप का अपना 

अमन मस्ताना कटियार 
(संस्थापक ऑफ़ कुर्मी युवा संस्थान )

Thursday 19 May 2016

दूसरों की मदद करना ही सबसेबड़ा धर्म है। "



" कहा जाता है दूसरों की  मदद करना ही  सबसेबड़ा धर्म है। " 

मदद एक ऐसी चीज़ है जिसकी जरूरत हर इंसान को पड़ती है, चाहे आप बूढ़े हो या बच्चे हो  या जवान; सभी के जीवन में एक समय ऐसा वक़्त  आता  है जब हमको दूसरों की  मदद की जरूरत  पड़ती है। आज हर इंसान ये बोलता है कि  कोई किसी की मदद नहीं  करता, पर आप खुद से  पूछिए की क्या आप ने कभी  किसी की  मदद की  है? अगर आप ने किसी दूसरों की मदद नहीं की आप दूसरों से मदद की उम्मीद  कैसे कर सकते है ?


आज मैं आप को यहाँ  एक स्टोरी कहानी बताने जा रहा हु जिसमे किसी की मदद को बताया गया है वो खुद भी इतना गरीब है फिर भी वो दूसरों की मदद करने की तम्मन्ना रखता है 

" एक गाओं  में किशोर  नाम का एक लड़का था जो बहुत गरीब  था। दिन  भर कड़ी  मेहनत  के बाद जगंल से लकड़ियाँ काट के लाता था  । और उनको बाजार में या कही और  बेचा करता था  एक दिन  किशोर  सर पे लकड़ियों का गट्ठर लिए  जगंल से गुजर रहा था। अचानक उसकी नजर एक   बूढ़े इंसान पर पड़ी और उसने उस बूढ़े इंसान को देखा जो बहुत दुबला था  । उसको देखकर लग रहा था की जैसे उसने बहुत  दिन से कहना नहीं खाया  है। किशोर का दिल पिघल गया लेकिन  वो बेचारा करता भी क्या ?

 क्यों  की उसके पास खुद खाने को नहीं था  वो उस बूढ़े का पेट कैसे भरता ? यही  सोचकर दुखी मन से किशोर  आगे बढ़ गया

आगे कुछ दूर चलने के बाद किशोर  को एक औरत दिखाई  दी जिसका बच्चा प्यास से रो रहा था इस जंगल में कही पनि नहीं था । बच्चे की हालत को देख कर के किशोर समझ गया था की वो बच्चा बहुत प्यासा है और वो इसी वजह से रो रहा है  उसकी हालत को देख कर किशोर से रहा नहीं गया  लकिन इस बार वो फिर से बेबश और लचर था क्यों की उसके पास भी अपने खुद के लिए पानी नहीं था  ।  और वो फिर से दुखी मन से आगे चल दिया । 

कुछ दूर जाकर किशोर को एक आदमी दिखाई दिया जो अपना तमब्बू  लगने के लिए सोच रहा था और वो कुछ पैसे वाला भी लग रहा था और उसके पास खाने और पिने के लिए भी सामान था ।  और वो अपना तम्बू लगने के लिए कुछ लकड़ियों की था  किशोर ने उसको अपना  गट्ठर दे दिया और बदले में उसने उससे पैसे की जगह  कुछ खाने और पिने के लिए पनि माँगा  वो आदमी भी हैरान था  की उसने ऐसा क्यों किया लेकिन  फिर भी उसने  किशोर को  कुछ खाना  और पीने  के लिए पनि दे दिया 
किशोर के मन में कुछ ख्याल आया और वो वह दो पल के लिए भी नहीं रुका  और वो खाना, पानी लकेर वापस जगंल की  ओर दौड़ा। और जाकर बूढ़े व्यक्ति  को खाना खिलाया और उस औरत के बच्चे को भी पानी पीने को दिया । 

ऐसा करके किशोर  बहुत अच्छा  महससू कर रहा था।


और  एक दिन किशोर उसी जंगल में  बहुत ऊचे  पहाड़ों  पर चढ़ कर  किसी पेड़ से लकड़ी काट रहा था  की अचानक  उसका  पैर फिसल गया और वो  निचे  आ  गिरा  वो  बेहोश  हो चुका  था  उसके  सरीर  के  कई  भागो से खून भी निकल रहा था की तभी  वह वो बूढ़ा  व्यक्ति  पहुंच गया और  वो औुरत  भी  पहुंच गयी  जब उसके किशोर को देखा  तो वो उसको अपने साथ ले आये  और उस व्यक्ति ने  किशोर के सारे जख्मो को साफ किया और  उस स्त्री  ने अपनी साड़ी का कुछ भाग  फाड़  कर किशोर के उस जगह पर बांध  दिया जहां से खून  निकल रहा था 

और जब किशोर को होश आया तो उसने अपने आप को उन लोगो के बीच में पाया जो उसकी  ही अगल बगल  बैठ कर किशोर के होश में आने का इन्तजार कर रहे थे  और किशोर को होश में आते देख कर जैसे उनके चेहरे खिल उठे हो  अब किशोर भी अपने आप को कुछ सही महसूस कर रहा था  और तभी किशोर ने उन  दोनों को धन्यवाद  बोला और भगवान  से प्रार्थना  की ,

की भगवान  हमेशा उसको ऐसे ही दूसरों  की मदद के लिए प्रेरित  करता रहे 

इस कहानी के सहारे  हमारा  उद्देश्य  आप सभी तक  ये मैसेज  पहुंचना है की चाहे हम कितने  गरीब क्यों ना हो  फिर भी हमको किसी दूसरे  गरीब की मदद  करनी चाहिए 

और अगर हम गरीब नहीं है तो भी दूसरों की मदद करनी चाहिए  हो सकता है की हमारे द्वारा की गयी मदद से हमको किसी  समय  काम  आ जाये 

आप को हमारी ये कहानी कैसी लगी बताना न भूलिए गा  और अगर पसंद आई हो तो अपने दोस्तों को शेयर करिये  और हमारे साथ जुड़ कर गरीब की मदद करने को बोलिए 

आप का अपना 

अमन मस्ताना कटियार 
(संस्थापक ऑफ़ कुर्मी युवा संस्था )

” भैया ! होटल तक चलोगे ?”


ट्रेन प्लेट फॉर्म नंबर एक पे आ चुकी थी। मैंने जल्दी जल्दी सामान उठाया और स्टेशन के बाहर आ गई। बाहर आते ही ऑटों वालों ने घेर लिया. ये तैय करना मुश्किल था किसकी ऑटो ली जाये। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो की।
” भैया ! होटल तक चलोगे ?”
उसने हाँ में सिर हिलाया और ऑटो में बैठने का इशारा किया। मैंने सारा सामान पीछे वाली सीट पे डाला और चलने को कहा। मौसम अपने मिज़ाज में था। होटल के गेट तक आते आते ज़ोरों से बारिश होने लगी। मैंने फटाफट ऑटो वाले को पैसे दिए और जल्दी जल्दी सामान ले कर बारिश से बचने के लिए होटल के अंदर भागी। एक रात के लिए रिसेप्सनिस्ट के पास जा कर रुम बुक कराया और फिर सामान सहित रुम के अंदर दाख़िल हुई। सामान जैसे ही रखा सामने बेड को देखते ही टूटते बदन को जैसे आराम करने का बहाना मिल गया।


पर…मैंने देखा उन सामान में मेरा डाक्यूमेंट्स का फोल्डर गायब हैं। मेरा दिल धक् से हो गया। मैं भागती हुई बाहर आयी तब तक ऑटो वाला जा चुका था। मैं एकदम सन्न रह गई। बारिश की परवाह किये बगैर बदहवास सी बहुत दूर तक उस ऑटो वाले को ढूंढने के लिए भागी. कुछ ऑटो वालों को रोक रोक के पूछ तांछ भी की। पर..कोई फायदा नही हुआ क्योंकि वो तो जा चुका था और इतने बड़े शहर में एक ऑटो वाले को ढूँढना इतना आसान नही था। मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया. मेरे सपने मेरा करियर और घरवालों की उम्मीदें सब एक एक कर के कांच की माफ़िक ज़मीन में गिर के टूट कर बिखरती हुए दिखी। मेरी एक गलती ने मेरी ज़िन्दगी भर की कमाई एक झटके छीन ली थी। आँखों में तो जैसे आंसुओं की झड़ी सी लग गई। ये समझना मुश्किल था कि वो बारिश की बूँदे थी या आँसू ही थे।
अचानक मैं इस उम्मीद से होटल के अन्दर भागी कि शायद फोल्डर मिल जाये..पर वहाँ भी नही मिला। एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह वापस रुम में आ गयी. पूरी रात इस तकलीफ़ में गुजरी कि घरवालों को अब क्या मुंह दिखाउंगी. मेरा करियर लगभग तबाह हो चुका था. एक मन किया सुसाइड कर लूँ. पर…वो भी करने की हिम्मत कहा थी मुझमें. बेबस हो चुकी थी. रोते रोते कब आँख लग गई पता नही चला. माँ के फ़ोन से आँख खुली.
” बेटा ! उठो..टाइम तो देखो..9 बज रहा हैं. जल्दी से रेडी हो वरना इंटरव्यू के लिए लेट हो जाओगी. मैं एक घंटे में फ़िर फ़ोन करुंगी. ”
” ठीक हैं माँ ! आप टेंशन मत लीजिये मैं टाइम पे रेडी हो जाऊँगी. ”
” ओके ! अपना ध्यान रखना और घबराना मत. बाय बेटा. ”
” थैंक यू माँ ! बाय. ”
माँ की आवाज़ सुनते ही मन किया कि फूट फूट कर रोऊँ. पर..चाह के भी ऐसा नही कर सकती थी. घड़ी की तरफ़ एक सरसरी निगाह डाली तो सुबह के 9:45 हो रहे थे.वक़्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा था. कुछ समझ ही नही आ रहा था कि क्या करु. पता नही पर…दिल के कोने से एक आवाज़ आई कि मुझे ऐसे ही सही पर इंटरव्यू देने जरुर जाना चाहिए. फिर फटाफट रेडी हुई और मेसेज पे दिए आर्गेनाइजेशन के पते पर पहुँच गई. बड़ी हिम्मत कर के अंदर गई. हाल में इंटरव्यू के लिए आये हुए लोगों की काफी भीड़ थी. उन सभी के हाथों में फ़ोल्डर था और मैं बिना किसी हथियार के निहत्थी जंग लड़ने निकली थी. मेरी घबराहट मेरे चेहरे पे साफ़ दिख रही थी. मेरा सारा आत्मविस्वास उस फ़ोल्डर के साथ कब का जा चुका था फ़िर भी हिम्मत कर सबसे आख़िरी वाली बेंच पे जा बैठी.
बैठी ही थी कि अचानक किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे थपथपा कर मुझे आवाज़ दी. मैं चौंक गई फिर मैंने पीछे मुड़ कर देखा. उसे देखते ही मेरे चेहरे की रंगत बदल गई. ये तो वही ऑटो वाला था.
” गुड़िया ! ये लो तुम्हारा फ़ोल्डर. कल मेरे ऑटो में भूल गई थी. सुबह ऑटो की सफाई में मिला. फ़ोल्डर खोल के देखा तो सबसे ऊपर इंटरव्यू का कॉल लैटर पड़ा हुआ था. उसमें यही का पता लिखा था और मुझे लगा कि तुम यही पे मिलोगी इसलिए यही देने आ गया. ”
उस फ़ोल्डर को देखते ही अनायास ही आँखों में आँसू छलक आए. उस ऑटो वाले को देख कर इन आँखों को भरोसा ही नही हुआ कि दुनिया में ऐसे अच्छे लोग भी होते हैं जो अजनबी हो कर भी बिना किसी स्वार्थ के देवदूत की तरह मदद करने आ जाते हैं.
” थैंक यू भैया ! आप नही जानते आपने ये फ़ोल्डर लौटा कर मेरे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया हैं. मेरा करियर बर्बाद होने से बचा लिया. थैंक यू सो मच भैया. ”
” नही गुड़िया ! ये तो मेरा फर्ज़ था. मुझे बेहद ख़ुशी हुई ये जान कर कि मैं किसी के काम तो आया. अच्छे से इंटरव्यू देना. मुझे पूरी उम्मीद हैं कि तुम पास जरुर होगी. अच्छा अब मैं चलता हूँ. बेस्ट ऑफ़ लक ! ”
” ठीक हैं भैया !थैंक यू सो मच भैया ! ”
मैं उस ऑटो वाले को कृतज्ञता भरी नजरों से जाते हुए देखती रही जब तक कि वो नज़रों से ओझल नही हो गया. वो मुझे यकीन दिला गया कि दुनिया में आज भी लोगों में इंसानियत अब भी ज़िन्दा हैं. फिर वापस अपनी सीट पे जा बैठी और उसी आत्मविस्वास से लबरेज अपनी बारी का इंतज़ार करने लगी.

Friday 6 May 2016

Help Poor People


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Friday 27 November 2015

KURMI YUWA SANSTHAN



mai 1 sanstha bana raha hu
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